Wednesday, June 17, 2009

मैं एक उन्मुक्त विहग हूँ मुझे पूरा आकाश चाहिए

कहते हैं की वक़्त के पहले
किस्मत के बहार कुछ नहीं मिलता
सत्य है यह वचन शायद
वरना मनुष्य यूँही नहीं सहता

गुज़र जाते हैं वो वक़्त हालात
वह पल, वह खूबसूरत लम्हात
हाथ आकर भी जो छूट जाए
रह जाता है बस उसी का एहसास

ख़ुशी, ग़म, आरजू, या वेदना
किसी का दर्द, या किसी का बिलखना,
किसी की चेष्टा या स्वयं का प्रत्यन
हो जाते हैं वाक्यात्, सब इसी में सृजन

वर्षों तक दम तोड़ता विश्वास
आसमान को छूने की झकझोरती आस
फिर भी फिसल जाना उसका आपकी मुट्ठी से
कब तक रखेंगे इरादे मज़बूत कर के?

लोगों के तमगे, 'बदतमीजी' का एहसास
ज़बान पे लगाम, मन में दफ़न ज़ज्बात
दोस्त हो कर भी न हो, मन को बांधे रखिये
इल्जाम हमेशा एक, की आप बेरहम हैं बड़े जिद्दी

फिर अचानक समझना और समझाना
हंसी और मुस्कराहट में है फर्क गहरा
वो खेलते हुए शब्द, वो गाते हुए पल
अच्छा लगा एक लम्बे अन्तराल बाद

कुछ चीज़ें न बदले, न सावन फिर आये
वह बंद कपाट, वो ठंडे ज़ज्बात
वापस फिर उसी ओर, उसी टूटते विश्वास के पास
हो जाओ विलीन, भूल जाओ खुला आसमान
आये जब तक न कायनात तुम्हारे पास |

PS: I owe the title to a friend.