Oft at times, one should find
A mind engaged
In warring contradictions
In a place like this
Where exists a knowledge abyss!
Alas! Bereft of Convictions,
Thoughts often aged
Swarm without Friction.
In a place like this
A questioning soul is amiss!
Thursday, October 14, 2010
Tuesday, October 12, 2010
Stay Away My Dear!
An overcast sky,
Clouded with darkness
A spring of colour
Spreads nevertheless.
Yet he Forbids
Happiness to come near
A tale spun so sordid
That Quoth he
“Stay Away My Dear”
What shalt she say
Grown weary with neglect.
Their Conversations abound
Erratic and Forlorn
Emphatic with words
And Absence of Sound
O’ she wonders!
How at fault was she?
And so she Wonders
As Time Flies Nigh
Is her Love someday To Be?
Clouded with darkness
A spring of colour
Spreads nevertheless.
Yet he Forbids
Happiness to come near
A tale spun so sordid
That Quoth he
“Stay Away My Dear”
What shalt she say
Grown weary with neglect.
Their Conversations abound
Erratic and Forlorn
Emphatic with words
And Absence of Sound
O’ she wonders!
How at fault was she?
And so she Wonders
As Time Flies Nigh
Is her Love someday To Be?
Monday, October 4, 2010
Aapke jawaab mein
छोटी छोटी रंजिशों में प्यार ढूंढ लें तो जाने
कोसों दूर रहने वाले की भावना को समझ पाएं तो जाने
ठहाके मारने के दिन तो उसी क्षण लद गए
जब बिलखती आँखों के मायने आपके लिए हो गए बेमाने
स्व-जड़ित कैदों से विचार मुक्त हो पाएं तो जाने
किसी की यादों से खुद को विमुख कर पाएं तो जाने
गनीमत सिलवतें ही थी, क्या आप भूल गए,
अपने हाथों के उस स्पर्श को हमसे छीन पाएं तो जाने
किसी की उल्फतों को नज़र-अंदाज़ कर पाए तो जाने
सोचते हैं की कभी तो दर्द बयान कर पाएं
उस काली कलम से शब्द छीन पाएं तो जाने
जिन सवालों के जवाब से आप खुद रहे बेखबर
वो छोड़ हमें, खुद से पूछें तो जाने
हमारे इकरार को मुक़र्रर कर पाएं तो जाने
क्या खूब-ऐ-किस्मत हमारा मजाक उड़ाया करती है
हमारी की गयी प्रशंसा को दरकिनार करिए तो जाने
आपकी खामोशी हमसे हमको ही छीन कर ले गयी
वो हंसी, वो नाटक, वो वो नाराजगी लौटा पाएं तो जाने
कभी अपने शालीन-ऐ-अंदाज़ में "मेरे साथ चलोगी" सुना पाएं तो जाने
गिरफ्त प्यार की न होती तो हम भी अहंकार-ऐ-सराबोर थे
हमारी हालत को समझ कर खुद पास आयें तो जाने
शिद्दत से बटोरा है हमने हर उस लम्हे को
उन लम्हों से खुद को छुड़ा पाएं तो जाने
रंजिशों को छोड़ हमें अपना पाएं तो जाने
कोसों दूर रहने वाले की भावना को समझ पाएं तो जाने
ठहाके मारने के दिन तो उसी क्षण लद गए
जब बिलखती आँखों के मायने आपके लिए हो गए बेमाने
स्व-जड़ित कैदों से विचार मुक्त हो पाएं तो जाने
किसी की यादों से खुद को विमुख कर पाएं तो जाने
गनीमत सिलवतें ही थी, क्या आप भूल गए,
अपने हाथों के उस स्पर्श को हमसे छीन पाएं तो जाने
किसी की उल्फतों को नज़र-अंदाज़ कर पाए तो जाने
सोचते हैं की कभी तो दर्द बयान कर पाएं
उस काली कलम से शब्द छीन पाएं तो जाने
जिन सवालों के जवाब से आप खुद रहे बेखबर
वो छोड़ हमें, खुद से पूछें तो जाने
हमारे इकरार को मुक़र्रर कर पाएं तो जाने
क्या खूब-ऐ-किस्मत हमारा मजाक उड़ाया करती है
हमारी की गयी प्रशंसा को दरकिनार करिए तो जाने
आपकी खामोशी हमसे हमको ही छीन कर ले गयी
वो हंसी, वो नाटक, वो वो नाराजगी लौटा पाएं तो जाने
कभी अपने शालीन-ऐ-अंदाज़ में "मेरे साथ चलोगी" सुना पाएं तो जाने
गिरफ्त प्यार की न होती तो हम भी अहंकार-ऐ-सराबोर थे
हमारी हालत को समझ कर खुद पास आयें तो जाने
शिद्दत से बटोरा है हमने हर उस लम्हे को
उन लम्हों से खुद को छुड़ा पाएं तो जाने
रंजिशों को छोड़ हमें अपना पाएं तो जाने
Subscribe to:
Posts (Atom)